"fb:pages" content="183980025505256" /> Spiritual and modern life: धर्म क्या हैं ,

सोमवार, 23 अक्टूबर 2017

धर्म क्या हैं ,

                   
                          धरींग धर्याति धर्मः                        जिसने हम सबको धारण किया है वही धर्म है, हम सबको किसने धारण किया है ,सूरज, चाँदमा ,धरती,आकाश,नेचर प्रकृति को किसने बनाया हैं,जिसने बनाया है,उसी ने इन्हें संभल के रखा है,उसी ने धारण किया हुआ है वही धर्म है। परमात्मा ने ,माँ दुर्गा ने सम्पूर्ण जगत को बनाया है,उन्ही ने सम्पूर्ण जगत को धारण किया हुआ है। इसीलिए परमात्मा ही धर्म है।
                 हम सबने हिन्दू, मुस्लिम,सिख,ईसाई,जैन,बौद्ध आदि को हमने धर्म मन लिया है। ये सभी सम्प्रदाय है ।
                      जैसे हमने अपने शरीर में वस्त्र धारण कर रखे है। उसी प्रकार परमात्मा,माँ दुर्गा ने हम सबको धारण कर रखा है। हम सबका धर्म एक है,
                         "हर हर महादेव
                         सतनाम श्री वाहे गुरु
                         अल्लाह हु अकबर
                          GOd is great"
                इन सबका का मतलब एक ही है,महादेव का मतलब है, जो सबसे बड़ा है,ओ परमात्मा है। सतनाम अर्थ है,सच नाम जो सदा रहने वाला हैं, और श्री का मतलब  जो बड़ा है,अथार्त् जो सदा रहने वाला हैऔर बड़ा है,वही वाहे गुरु परमात्मा है, इसी प्रकार अल्लाह,खुदा है ,ओ अकबर है अकबर का मतलब है सबसे बड़ा ।
                                     God ही great है अर्थात सबसे बड़ा है । बस यही इन सबका मतलब हैं, अर्थ है। जैसे सूरज को इंडिया में सूरज कहते है,अमेरिका में sun कहते है,और अरब में आफ़ताब कहते है,लेकिन तीनो का मतलब तो एक ही हैं ना ।
                 आज जितने भी धर्म के नाम से युद्ध,लड़ाई,झगड़े हो रहे है ओ सब न "समझी "के कारण हो रहे है।
                  जैसे paracetamole से बुखार ठीक होता है,ये सभी मानते है चाहे ओ हिन्दू हो या मुस्लिम ,ईसाई सभी science, medicine आदि के बारे में सभी का एक मत है। लेकिन धर्म के बारे में सभी का एक मत नही है क्यों, कोई कहता है आत्मा यहाँ ,कोई कहता है परमात्मा आकाश में है,कोई कहता है,कही नही है ,कोई कहता है आत्मा, परमात्मा है ही नही बस ये nature, कुदरत है ,साइंस है।




  • आधे से अधिक युद्ध लड़ाई झगड़े धार्मिक लोग करते है। किसी को जबरदस्ती अपना धर्म माननेे के force मत करो। यदि सब की भलाई के लिए होगी तो क्यों नही मानेंगे यदि नही मानते है तो फिर भी force जबरदस्ती तो मत ही करो।

    • किसी की मंदिर मस्जिद मत तोड़ो फोड़ो अब जो बना है चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद रहने दो चाहे वह किसी भी देश या मुल्क में बना हो क्योंकि धर्म के झगड़े यही से शुरू होते है ।और हो सके तो दूसरे लोग जिस किसी चीज़ को मानते है उनकी बुराई मत करो।

       Conclusion   
                      "   God ,भगवान ख़ुदा या अल्लाह के वचन,बातें संप्रदाय कहलातीं है, और स्वयं भगवान,God ख़ुदा या अल्लाह को धर्म कहते है "।

      संप्रदाय   :- 
    पंथ,way, रास्ते हैं। भगवान ,God ,ख़ुदा,(धर्म ) को पाने  या दर्शन करने के रास्ते को सम्प्रदाय ,पंथ कहते हैं। हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई, बौद्ध,जैन,पारसी आदि सम्प्रदाय हैं।
    सम्प्रदाय की पुस्तकें :- (गीता,कुरान,जिनवाणी,धम्मपद, बाईबिल,शिवपुराण,श्रीदुर्गा सप्तसती आदि)  

             Such as example :: -
    भगवान श्री कृष्ण श्री गीता पुराण में कहते हैं  हे!अर्जुन तू"सर्वान् धर्मान परित्यज्य मामेकम् शरण व्रज "सभी धर्मों को छोड़ मेरी शरण में आ जा "। यहाँ छोड़ने से मतलब(पति, पत्नी, बच्चे, घर,परिवार, नौकरी, धन आदि को छोड़ने  से नही है।
    लेकिन उस समय( हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई) ये सारे जिन्हें आज हम धर्म कहते है जो की सम्प्रदाय(विचार या अवधारणा) है। उस समय तो नही थे । तो अर्जुन उस समय कौन सा धर्म धारण किये थे भगवान अर्जुन से कौन सा या किस धर्म को छोड़ने की बात भगवान गीता मे कह रहे है। 
                     धर्म का सीधा सा मतलब हैं रखना धारण करना। अर्जुन धारण किया हुआ था,जिन्हें अपना धर्म बनाया हुआ था वह था की मैं राजा हूँ, मैं धनुर्धारी हूँ, मै सत्यवादी हूँ,नर नारायण,देव पुत्र हूँ आदि। यही सब उन्होंने मन में अपना धर्म कहते थे या मानते थे। सच में अर्जुन जी ये सब थे। अर्जुन का सत्यवादी होना कोई धर्म नही था।अर्जुन का सत्यवादी होना(संप्रदाय की बातें हैं) मन का अच्छा सही विचार या भाव था जैसे यदि यही अच्छे,सही विचार या भाव बिना अहंकार के मन में हम रखते हैं तो अच्छा कार्य,काम मनुष्य करता हैं। यदि बुरे,गलत विचार मन में चलते हैं या होते हैं तो व्यक्ति से गलत कार्य,काम होते हैं और सजा मिलती है। ये मन के विचार,भाव हैं। ये तो थी बात विचार और कर्म के बारे में। यदि अर्जुन का सत्यवादी होना धर्म नही था तो धर्म क्या था या हैं या धर्म किसे कहते हैं? क्योकि धर्म तो ख़ुद भगवान श्री कृष्ण या भगवान के नाम हैं जिन्हें हम आज (God, ख़ुदा अल्लाह,प्रभु,वाहे गुरु भगवान बुद्ध ,महावीर) कहते हैं। एहि धर्म हैं। धर्म शब्द केवल भगवान के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए।जब अर्जुन जान गया की धर्म भगवान श्री कृष्ण ही हैं।तब भगवान ने कहा अब तू मेरी शरण में आ सकता हैं।
             
             ये सारी बाते भगवान ने हम सबको समझाने के लिए अर्जुन जी द्वारा या माध्यम से बताई या कही हैं। अर्जुन को सब पता था धर्म और अहंकार क्या हैं।

         
      
                                      
                          
                          

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